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कविता

कैसे लोग थे हम

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


गेहूँ की बालियों में लगते रहे कीड़े
हम खामोश रहे
सफेद कपड़ों से काँपते रहे गाँव
हम खामोश रहे
समुद्र में तूफान आया
हम खामोश रहे
ज्वालामुखी विस्फोट हुए
हम खामोश रहे
बादलों से आग की वर्षा हुई
हम खामोश रहे
उसने खींच ली म्यान से तलवार
हम खामोश रहे

कैसे लोग थे हम
हमें बोलने की छूट दी गई
हम खामोश रहे।

 


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